चीन को नहीं, गरीब देशों को दो लोन...नाराज ट्रंप ने वर्ल्ड बैंक को दी नसीहत


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप वर्ल्ड बैंक से नाराज हैं. क्योंकि वो चीन को लगातार पैसे दे रहा है. ट्रंप का कहना है कि चीन संपन्न देश है इसलिए उन्हें वर्ल्ड बैंक से लोन की आवश्यकता नहीं है. चीन को अपना भार खुद ही उठाना चाहिए. वर्ल्ड बैंक चीन के बदले विश्व के अन्य गरीब देशों की सहायता करे तो बेहतर होगा.


अपने ट्विटर हैंडल पर नाराजगी जाहिर करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने लिखा, 'चीन के पास पहले से काफी धन मौजूद है. अगर नहीं है तो उन्हें बनाने के तरीके पर विचार करना चाहिए. फिर वर्ल्ड बैंक चीन को लोन क्यों दे रहा है? इसे रोकिए.'


वित्त मंत्री स्टीवन म्नुचिन ने भी ट्रंप के आरोपों का समर्थन किया है. म्नुचिन ने गुरुवार को वर्ल्ड बैंक के प्रतिनिधियों के सामने राष्ट्रपति ट्रंप की बात रखी. उन्होंने कहा कि व्हाइट हाउस वर्ल्ड बैंक के इस रवैये से नाराज है. नए पंचवर्षीय प्रोग्राम के तहत चीन को दी जाने वाली राशि में कमी आनी चाहिए.


वर्ल्ड बैंक में चीन मामलों के निदेशक मार्टिन रेजर ने कहा, 'नई योजना हमारे बीच के संबंधों को दर्शाएगा. उनसे हमारा जुड़ाव अब चुनिंदा मुद्दों पर ही होंगे. धीर-धीरे चीन को दी जाने वाली कर्ज में भी कटौती की जाएगी.


हालांकि वर्ल्ड बैंक के आश्वासन के बाद भी अमेरिका संतुष्ट नहीं है. उनके मुताबिक लोन में कमी समस्या का समाधान नहीं है. ट्रंप प्रशासन का कहना है कि चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है. वो अपने पैसों की जरूरत स्वयं भी पूरा कर सकता है, बिना लोन लिए. क्योंकि वर्ल्ड बैंक का उद्देश्य गरीब देशों को आर्थिक मदद देना है. संपन्न देशों को नहीं.







चीन और अमेरिका के बीच साल 2018 से ही ट्रेड वॉर चल रहा है. ट्रंप प्रशासन ने मार्च महीने में चीन से आयात होने वाले स्टील और एल्युमिनियम पर भारी टैरिफ लगा दिया था. इसके जवाब में तब चीन ने भी अरबों डॉलर के अमेरिकी आयात पर टैरिफ बढ़ा दिया. जिसके बाद से यह विवाद बढ़ता जा रहा है.


अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर सुलझ न पाने से वैश्विक अर्थव्यवस्था को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. दुनिया की प्रमुख नौ अर्थव्यवस्थाएं मंदी की कगार पर हैं. जानकारों का अनुमान है कि यदि इसका समाधान नहीं निकाला गया और ट्रेड वॉर जारी रहा तो इससे साल 2021 तक अमेरिकी अर्थव्यवस्था फिर से मंदी के दायरे में चली जाएगी. इससे पूरे दुनिया की इकोनॉमी को करीब 585 अरब डॉलर का चूना लग सकता है.


हालांकि संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन में बताया गया है कि अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ट्रेड वॉर से भारतीय अर्थव्यवस्था को फायदा होगा. क्योंकि इससे देश के निर्यात में 3.5 फीसदी की तेजी आएगी.


वहीं, सबसे अधिक फायदा यूरोपीय संघ को होगा, जिसके पास अतिरिक्त 70 अरब डॉलर का कारोबार आएगा. यूएन कांफ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (यूएनसीटीएडी ) की रिपोर्ट में कहा गया कि वाशिंगटन और बीजिंग के बीच चल रहे टैरिफ युद्ध (एक दूसरे के सामानों पर शुल्क लगाना) का फायदा कई देशों को होगा, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, भारत, फिलीपींस, पाकिस्तान और वियतनाम प्रमुख हैं.


'द ट्रेड वार्स: द पेन एंड द गेन' शीर्षक की रिपोर्ट में कहा गया है, "द्विपक्षीय टैरिफ उन देशों में काम कर रही फर्मों के लाभ के लिए वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बदल देते हैं जो उनसे सीधे प्रभावित नहीं होते हैं."


इस अध्ययन में कहा गया कि यूरोपीय निर्यात को 70 अरब डॉलर का फायदा होगा, जबकि जापान, कनाडा और मैक्सिको के निर्यात में प्रत्येक को 20-20 अरब डॉलर का फायदा होगा.


यूएनसीटीएडी की रिपोर्ट में कहा गया, "अमेरिका-चीन तनाव से उन देशों को ज्यादा फायदा मिलने की उम्मीद है, जो अधिक प्रतिस्पर्धी हैं और अमेरिकी और चीनी कंपनियों की जगह लेने की आर्थिक क्षमता रखते हैं."







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