दिल्ली में तीन नाबालिगों की मौत, हत्या या हादसा? घेरे में पुलिस!


मध्य दिल्ली में शनिवार की रात कथित सड़क हादसे में तीन किशोरों की संदिग्ध मौत की खबरें मीडिया में छपने और दिखा दिये जाने के कई घंटे बाद मध्य दिल्ली पुलिस की नींद टूटी है. रात की घटना की अधिकृत जानकारी घंटों बाद तक भी मीडिया को न देने वाले, मध्य दिल्ली जिला डीसीपी और दिल्ली पुलिस के मुख्य प्रवक्ता मंदीप सिंह रंधावा ने व्हाट्सएप ग्रुप में रविवार दिन में करीब 11 बजकर 50 मिनट पर बताया कि, वे दिन में डेढ़ बजे घटना के बारे में मीडिया को बताएंगे. उल्लेखनीय है कि, शनिवार की रात मध्य दिल्ली के दिल्ली गेट इलाके में हुए कथित संदिग्ध सड़क हादसे में स्कूटी सवार तीन किशोरों साद, हमजा और ओसामा की दर्दनाक मौत हो गई. तीनों आपस में रिश्तेदार बताये जाते हैं. संदिग्ध हालातों में मरने वाले तीनों किशोर तुर्कमान गेट इलाके में शादी समारोह में पहुंचे थे. वहां से वे स्कूटी पर सवार होकर रात के वक्त निकल गए. 


हादसे के शिकार साद के पिता घटना वाली रात मीडिया से कहा, 'यह सिर्फ सड़क हादसा नहीं है. दरअसल कुछ पुलिस वाले स्कूटी सवार किशोरों का पीछा कर रहे थे. तभी हादसे का शिकार होकर तीनों की मौत हो गयी. हादसे के शिकार किशोरों में से कुछ लोगों ने अस्तपताल में दाखिल कराया था.' साद के पिता का आरोप था कि, "अगर मध्य जिला पुलिस ईमानदार है तो फिर वो घटनास्थाल का CCTV फुटेज क्यों छिपा रही है? CCTV में सब कुछ दिखाई दे जायेगा कि, पुलिस वाले कथित रुप से स्कूटी का पीछा कर रहे थे या नहीं? "


 


घटनास्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 'घटना के बाद ही मौके पर डीसीपी मंदीप सिंह रंधावा दल-बल के साथ पहुंच गये थे.' सवाल यह पैदा होता है कि जब डीसीपी खुद मौके पर थे या नहीं थे? इतने बड़े हादसे का सीसीटीवी फुटेज आखिर पुलिस किस षडयंत्र के तहत सामने नहीं ला रही है?' दूसरा सवाल कि, रात के वक्त हुई घटना की कोई अधिकृत जानकारी आखिर दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता और मध्य जिले के डीसीपी मंदीप सिंह रंधावा ने मीडिया से क्यों छिपाये रहे? अगर तीनों युवकों की मौत में पुलिस की भूमिका संदिग्ध नहीं है? जबकि यही दिल्ली पुलिस प्रवक्ता एक-दो झपटमार, चोर-उचक्के पकड़ लेने पर दिन भर अपने पब्लिक रिलेशन सेल (पीआरओ सेक्शन) के जरिये बताने के लिए भागमभाग में लगे रहते हैं. जब मीडिया से ही कोई अधिकृत जानकारी न बांटकर पुलिस इस घटना को घंटो छिपाये रही, तो ऐसे में पीड़ित परिवारों का आरोपों को भी फिर आखिर सिरे से नकार पाना न-मुमकिन है. मतलब कहीं न कहीं पुलिस संदिग्ध है. और पीड़ित परिवारों के इन तमाम आरोपों में कुछ न कुछ तो दम है.


 


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