भोपाल. खेसारी दाल आने वाले दिनों में एक गेम चेंजर फसल साबित होगी। कृषि वैज्ञानिक इसकी ऐसी किस्मों का विकास कर रहे हैं जो क्लाइमेट चेंज का सामना करने में सक्षम होगी। इस फसल में मिलने वाला न्यूरो टॉक्सिन पूरी तरह से खत्म हो जाएगा, जो शारीरिक अपंगता की वजह बनता है। इस तत्व के कारण ही इस दाल पर मप्र समेत कई राज्यों में प्रतिबंध है। यह अनुसंधान राजधानी के फंदा स्थित भारतीय दलहन अनुसंधान केंद्र (आईआईपीआर) का क्षेत्रीय कार्यालय कर रहा है। यह बात राजधानी में क्लाइमेट चेंज रोधी स्मार्ट दाल की फसलों के विकास के विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में शामिल होने आए आईआईपीआर के राष्ट्रीय निदेशक डॉ. एनपी सिंह ने कही। वे पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे। सिंह ने कहा कि भोपाल स्थित सेंटर में पदस्थ वैज्ञानिक डॉ. अर्चना सिंह दो दशकों से खेसारी दाल पर ही काम कर रहीं है। वे जल्द ही न्यूरो टॉक्सिन को जीरो पर ले आएंगी। न्यूरो टॉक्सिन की मात्रा 0.4 से घटकर 0.02 पर आई है।
मध्यप्रदेश दालों के उत्पादन में देशभर में अव्वल है। इसीलिए खेसारी समेत सभी दालों की ऐसी किस्मों को विकास फंदा स्थित सेंटर में किया जा रहा है जो क्लाइमेट चेंज का सामना कर सकें।
दुनियाभर से पहुंचे 500 कृषि वैज्ञानिक
उल्लेखनीय है कि विश्व दलहन दिवस पर आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में 500 से ज्यादा वैज्ञानिक शोध अधिकारीगण प्रबुद्ध जन भाग लिया देश एवं विदेश से पधारे तमाम वैज्ञानिकों ने आज दलहनी खेती से जुड़े कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर मंथन किया। कई शोध निष्कर्षों पर पहुंचा गया वैज्ञानिकों के द्वारा लीड और इनवाइटेड लेक्चर प्रस्तुत किए गए, जिनमें डॉ एमसी सक्सेना डॉ ओम गुप्ता डॉ ममता शर्मा डॉ एके तिवारी डॉ डीके यादव आदि प्रमुख रूप से शामिल रहे
। इस अवसर पर भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ एन पी सिंह ने बताया कि हमारा देश दलहन उत्पादन के क्षेत्र में काफी प्रगतिशील हो चुका है शीघ्र ही हम दलहन उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाएंगे आपने बताया कि यह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन जिसको कि भोपाल में आयोजित किया गया काफी उपयोगी रहा इस सम्मेलन के माध्यम से जो निष्कर्ष एवं शोध सिफारिशें प्राप्त हुई है। उन्हें परिषद को भेजा जाएगा।
इसलिए खेसारी दाल पर है बैन : मेडिकल रिसर्च पाया गया था कि खेसारी दाल से पैरों में अपंगता आ जाती है। व्यक्ति न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर लैथरिज्म से ग्रसित हो जाता है। सरकार ने इसके बुरे प्रभाव देखने के बाद ही किसानों से इसकी खेती करने को मना किया था। यह दाल बाजार में 30 से 40 रुपए प्रतिकिलो की कीमत में मौजूद है।