60 साल से अधिक उम्र के सीनियर सिटीजन के बीसीजी टीकाकरण को शुरू हुए 12 दिन बीत चुके हैं। लेकिन अब तक सिर्फ 10 लोग ही स्वेच्छा से इस टीकाकरण प्रोग्राम में भाग लेने के लिए सामने आए हैं। यह टीका बुजुर्गों में कोरोना संक्रमण होने की स्थिति में उसके दुष्प्रभावों और मृत्यु की आशंका को काफी कम कर देता है, और फेफड़ों के संक्रमण से जुड़ी सभी बीमारियों में बचाव करता है।
भारतीय आयुर्विज्ञान शोध संस्थान (आईसीएमआर) की ओर से बैरागढ़ सिविल अस्पताल को इस टीकाकरण का सेंटर बनाया गया है। इसमें सिर्फ 6 सीनियर सिटीजंस को टीके लगाए गए हैं, 4 बुजुर्गों का मेडिकल चेकअप हो चुका है, उन्हें अगले दो दिन में टीके लगाए जाएंगे।
राजधानी में शनिवार को कोरोना के 179 नए पॉजिटिव मरीज मिले। इलाज के दौरान चार पॉजिटिव मरीजों की मौत हो गई। इसके साथ ही शहर में कोरोना वायरस के संक्रमण से जान गवाने वालों की संख्या बढ़कर 270 पर पहुंच गई है। यही नहीं, कुल संक्रमितों का आंकड़ा 9 हजार 778 हो गया है। शनिवार को सबसे ज्यादा पंचशील नगर में 5 और राजीव नगर में 3 पॉजिटिव मिले हैं। शहर के हर इलाके से एक-दो कोरोना पॉजिटिव मरीज सामने आए हैं।
दुनिया में यह टीका पहले 1920 में सामने आया था। भारत में पहली बार 1948 में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसका टीकाकरण शुरू हुआ। 1949 में इसे सरकारी स्कूलों में शुरू किया गया। लेकिन 1962 में जब राष्ट्रीय टीबी प्राेग्राम शुरू हुआ तो देशभर में बच्चों को जन्म के तुरंत बाद यह टीका लगाया जाने लगा। इस हिसाब से माना जा सकता है कि 58 साल की उम्र वाले अधिकांश लोगों को यह टीका लगा है। लेकिन इससे ज्यादा उम्र वाले लोग इससे छूटे हुए हैं। नवजातों को टीबी व फेफड़ों से जुड़े फ्लू के संक्रमण से बचाने लगाया गया बीसीजी (बेसिल कालमेट ग्युरिन) का टीका कोरोना को बढ़ने से रोकता है। वहीं सार्स बीमारी यानी सीवियर एक्यूट रेस्पायरेटी सिंड्रोम को विकसित होने से रोकता है। यही कारण हैं कि भारत में बच्चों और किशोरों में कोरोना का संक्रमण निष्प्रभावी रहा है। वहीं 58 साल से अधिक उम्र के लोगों में कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद मृत्युदर अधिक है।